कर्क लग्न की कुंडली में चंद्र लग्नेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । मंगल पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं, इस लग्न कुंडली में एक अति योग कारक गृह हैं । इस प्रकार दोनों ही गृह बहुत शुभ है और अपनी दशाओं में जातक को शुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं … Continue reading
जन्मकुंडली के किसी शुभ भाव में चन्द्रमंगल की युति को महालक्ष्मी योग कहा जाता है । लग्नकुंडली के सभी केंद्र, त्रिकोण और धन तथा लाभ स्थान शुभ स्थानों में आते हैं । तीसरे भाव को अष्टम से अष्टम होने की वजह शुभ नहीं कहा जाता तथा छठे, आठवें व् बारहवें भाव को त्रिक भाव जाना … Continue reading
यदि चंद्र या मंगल जन्मकुंडली के शुभ भावों में से किसी एक भाव में एक साथ स्थित हो जाएँ तो इसे महालक्ष्मी योग कहा जाता है । आपको बताते चलें की जन्मकुंडली के केंद्र भाव, त्रिकोण भाव और धन तथा लाभ भाव को शुभ स्थान माना जाता है । वहीँ तीसरे भाव को उतना शुभ … Continue reading
जन्मकुंडली के शुभ भावों में से किसी एक भाव में चंद्र मंगल की युति को महालक्ष्मी योग (Mahalakshmi yoga) कहा जाता है । इस योग के बारे में विस्तृत चर्चा से पहले आपको बता दें की की कुंडली के केंद्र भाव, त्रिकोण भाव और धन तथा लाभ भाव शुभ स्थान माने जाते हैं । वहीँ … Continue reading
ॐ श्री गणेशाय नमः । सामान्यतः यदि लग्न कुंडली (Lagan Kundali) में कोई गृह अपनी नीच राशि में स्थित हो तो उसे अशुभ मान लिया जाता है। ऐसी धारणा बन जाती है की ये गृह अपनी महादशा अथवा अन्तर्दशा (Mahadasha and Antardasha) में विभिन्न प्रकार की समस्याएं जरूर उत्पन्न करेगा, जातक को प्रताड़ित करेगा और … Continue reading