इम्पोसड थ्योरी बाधकेश imposed theory badhakesh

इम्पोसड थ्योरी बाधकेश Imposed Theory Badhakesh

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  • बड़ों को प्रणाम, छोटों को स्नेहशीर्वाद के साथ आज के विषय का श्रीगणेश करता हूँ । मित्रों आजकल एक ज्योतिषीय थ्यूरी काफी प्रचलन में है । आशा है आपने भी इसके बारे में अवश्य सुन रख्खा होगा । इसे बाधकेश के नाम से जाना जा रहा है । आज हम आपको इस बाधकेश थ्यूरी की प्रमाणिकता से रूबरू करवाने का प्रयास करेंगे । आशा है आज का यह लेख आपकी ज्योतिषीय जानकारी में वृद्धिकारक होगा और सही फलादेश की ओर आपका पथ प्रदर्शन करेगा …




    क्या होता है बाधकेश Meaning of Badhkesh :

    बाधकेश का अर्थ होता है बाधा उत्पन्न करने वाले भाव का स्वामी । चलते कामों में रूकावट पैदा करने वाला । चर लग्न की कुंडली में ग्यारहवें भाव का स्वामी बाधकेश हो जाता है और अपनी दशा अन्तर्दशा में बुरे ही फल प्रदान करता है । यानि १,४,७,१० लग्न की कुंडली में जो भी गृह ग्यारहवें भाव का स्वामी होगा वह जातक के जीवन में बाधा उत्पन्न करेगा, ऐसी मान्यता है ।

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    इसी प्रकार स्थिर लग्न की कुंडली में यानि २,५,८,११ लग्न की जन्मपत्री में नवम भाव का स्वामी बाधकेश हो जायेगा और द्विस्वभाव लग्न यानि ३,६,९,१२ भाव की जन्मपत्री में सप्तम भाव का स्वामी जीवन पर्यन्त जातक के लिए बाधाएँ उत्पन्न करेगा ।

    इम्पोसड थ्योरी बाधकेश Imposed theory of Badhkesh :

    जो भी ज्योतिषहिन्दीडॉटइन jyotishhindi.in के नियमित पाठक हैं अवश्य ध्यान दें की यह एक थोपी गयी थ्योरी है । सच्चाई से इसका कोई लेना देना ही नहीं है । इस प्रकार की अनर्गल चीजों से बचें । अपनी चेतना पर विश्वास करें । अपने अनुभव और तर्क की कसौटी पर इस थ्योरी को परखें और आप पाएंगे की यह बाधकेश थ्योरी एप्लीकेबल ही नहीं है । और यदि इसे सही पाते हैं तो आप इसे अपने फलादेश की प्रक्रिया का हिस्सा मान कर आगे बढ़ सकते हैं । परखें अवश्य ऐसी आपसे प्रार्थना है ।



    किसी मूल ग्रन्थ में नहीं है बाधकेश का ज़िक्र Badhkesh not available in mool jyotish granthas :

    बाधकेश का ज़िक्र ज्योतिष के किसी मूल ग्रन्थ में नहीं है । यह बाद में अमेंडमेंटस में लिया गया है । जो बुरी तरह से पिट चुका है । हमने अनुभव किया है की यह थ्योरी किसी काम की नहीं है केवल नए ज्योतिष विद्यार्थियों को उलझाती है और ज्योतिष को बेवजह ही जटिल बनाती है । उदाहरण के लिए यदि चर लग्न लेते हैं । मेष लग्न में शनि ग्यारहवें भाव के स्वामी होकर लाभेश होते हैं और मकर राशि दशम भाव में आती है इसलिए दशमेश भी होते हैं । मेष लग्न में एक सम गृह होते हैं । अब शनि यदि एकादशेश होने से बाधक हो गए तो जातक का कर्म और लाभ दोनों ही जातक के लिए बाधक हो गए । यह किस प्रकार संभव हो सकता है । बिना लाभ की मोटिवेशन के कैसे जातक कर्म करेगा । और यदि थोड़ा और सूक्ष्म में जाएँ तो बिना कर्म के जातक जीवित ही नहीं रह सकता है । हमारे चलने उठने बैठने साँस लेने में सभी में सूक्ष्म रूप में करना शामिल रहता है । भले ही हमें उसका बहन हो या नहीं हो । बिना कर्म के प्राणी जीवित ही नहीं रह सकता है ।

    एक और उदाहरण के साथ लेख समाप्त करूँगा । इसके बाद आप अपने ज्ञान और तर्क को कसौटी बनायें और आगे बढ़ें । यदि मेष लग्न की ही जन्मपत्री में शनि दशम भाव में स्थित हो जाएँ तो शष नाम का पंचमहापुरुष योग बनाते हैं । अब आप ही बताइये की यदि शनि बाधकेश हैं तो शष योग किस प्रकार बना सकते हैं ।

    ऋषि मुनियों की तपस्या का आदर कीजिये । ज्योतिष को देव विधा कहा जाता है । देवताओं के समक्ष खड़े होने के लिए बड़ी तपस्या और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है फिर भी जन्मों लग जाते हैं । सस्ते में मत लीजिये ।

    आपका दिन शुभ हो । कुछ बुरा लग गया हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ ।

    Note : ज्योतिषहिन्दीडॉटइन केवल एक माध्यम है जिसके इस्तेमाल से आपके समक्ष ज्योतिष सम्बन्धी जानकारी प्रस्तुत जी जाती है । लेखकों के किसी प्रकार के दावे के लिए ज्योतिषहिन्दीडॉटइन jyotishhindi।in जिम्मेवार नहीं है ।

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