करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रामेश्वरम एक धार्मिक स्थल होने के साथ साथ अत्यंत रमणीय स्थल के रूप में भी विख्यात है । यहाँ स्वयं श्री राम ने दो ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की जिनमे से पहले को “रामलिंगम” और दूसरे को “वैश्वलिंगम” कहा जाता है । लिंग के रूप में इस मंदिर में मुख्य भगवान श्री रामनाथस्वामी को माना जाता है जो “वैष्णववाद” के प्रतीक हैं और फिर शिव को जो “शैववाद” के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं । इस प्रकार यह पवित्र स्थल वैष्णववाद और शैववाद के पवित्र संगम के रूप में विख्यात हुआ और कालांतर में इसे दक्षिण का बनारस भी कहा जाने लगा ।
रामेश्वरम् का यह रामनाथस्वामी मंदिर भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है जिसमे स्थापित ज्योतिर्लिंग दक्षिण भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है और बनारस की बराबरी का आध्यात्मिक महत्व रखता है । प्रतिवर्ष लाखों की तादात में श्रद्धालु, साधक व् टूरिस्ट इस पवित स्थल के दर्शनार्थ यहाँ पहुंचते हैं ।
यहाँ मंदिर के दीवारों पर खोद कर बनाई गई पत्थरों की मूर्तियां बेजोड़ कला का नायब नमूना हैं जो सच में अद्भुत प्रतीत होती है । दीवारों पर की गई कारीगरी मंदिर के गौरवशाली इतिहास और महान कला को दर्शाती है । लगभग 15 एकड़ का मंदिर का क्षेत्र है जिसमें अनेक प्रकार के भव्य वास्तुशिल्पी की झलक मिलती है । इतिहासकारों का कहना है की समय-समय पर इस मंदिर की रक्षा कई राजाओं ने की थी ।
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एक और बात जो इस मंदिर को खास बनाती है वह है प्राकृतिक झरने का पानी जिसे ‘थीर्थम’ कहा जाता है । मंदिर परिसर में अन्य विभिन्न देवताओं के मंदिर भी स्थापित हैं और 24 पवित्र जल के ऐसे स्रोत हैं जिन्हें बहुत पवित्र माना जाता है । इनमे से भी 22 तीर्थ तो केवल रामानाथस्वामी मंदिर के भीतर ही हैं । ऐसी मान्यता है कि इन पवित्र झरनो के पानी में डुबकी लगाने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, दुखों से छुटकारा मिलता है और किये गए पापों से मुक्ति मिल जाती है । भगवान के दर्शन से पूर्व इन झरनों से होकर जाना होता है ।
रामेश्वरम मंदिर का इतिहास पुरातन भी है और आकर्षक भी । यह मंदिर रामेश्वरम के द्वीप में तमिलनाडु के सेतु तट पर स्थित है । यहाँ पामबन ब्रिज के माध्यम से पहुंचा जाता है । विशाल मंदिरों के साथ साथ लंबे अलंकृत गलियारे, टावर और 36 तीर्थ रामेश्वरम का मुख्य आकर्षण हैं । रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत के दक्षिण में 12 ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है और बनारस तीर्थस्थान की बराबरी का महत्व रखता है । मंदिर के तीन गलियारों में सबसे लंबे और पुराने समय के गलियारे उत्तर और दक्षिण के गलियारे कहे जाते हैं । पश्चिमी टावर 78 फीट और पूर्वी टॉवर 126 फीट ऊंचा है और नौ स्तरों से बना है । इस भव्य मूलस्थान के ठीक सामने नंदी विराजित हैं ।
महाविद्वान रावण एक ब्राह्मण था और न चाहते हुए भी श्री राम के हाथों उसका वध हुआ । राम इस ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करना चाहते थे । तब एक साधु ने श्रीराम से कहा कि इस जगह पर शिवलिंग स्थापित करने से आप रावण के वध के पाप से मुक्ति पा सकते हैं । तदोपरांत प्रभु राम ने बजरंगबली को कैलाश पर्वत पर एक लिंग लाने के लिए भेजा । जब हनुमान जी समय पर वापस ना लौट सके तो माता सीता ने मिट्टी की मदद से एक लिंग तैयार किया जिसकी स्थापना कर दी गयी । इसे ही ‘रामलिंग’ कहा गया । जब भगवान मारुती लौट आये तो उन्हें यह देखकर बहुत दुख हुआ । उनके दुख को देखकर भगवान श्रीराम ने हनुमान जी की भक्ति का भी मान रखा और हनुमान जी द्वारा लाये लिंग की भी स्थापना की । उस लिंग का नाम रखा ‘वैश्वलिंगम’। यही कारण है की रामनाथस्वामी मंदिर को वैष्णववाद और शैववाद दोनों से जोड़कर देखा जाता है । इतिहासकारों का मानना है रामेश्वरम का रामनाथस्वामी मंदिर 12वीं शताब्दी का है ।
यहाँ प्रतिवर्ष जून और जुलाई महीने में ब्रह्मोत्सव का आयोजन किया जाता है । यह रामनाथस्वामी मंदिर जाने का सबसे बेहतरीन समय होता है । इस समय कई देशों से पर्यटक इस पवित्र स्थल के दर्शनार्थ यहाँ पहुँचते हैं ।
मदुरई का हवाई अड्डा मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे पास पड़ता है जो करीब १६०-७० किलो मीटर की दूरी पर है । एयरपोर्ट पहुँच कर आप टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं । अगर आप रेल यात्रा के माध्यम से जाते हैं तो आप रामेश्वरम तक सीधे पहुंच सकते हैं । चेन्नई, मदुरई, कोयंबटूर, त्रिची, और तंजावुर से कई ट्रेनें रामेश्वरम तक आसानी से पहुंचा देती हैं । रामेश्वरम से जुड़े हुए शहरों जैसे मदुरई, कन्याकुमारी, चेन्नई त्रिची, पांडिचेरी या तंजावुर पहुँचने पर आप बस के माध्यम से भी रामेश्वरम तक पहुंच सकते हैं ।