आदिशक्ति माँ दुर्गा को महागौरा, माँ जगदम्बा, शेरांवाली माँ आदि अनेक नामों से पूजा जाता है । शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री माँ दुर्गा के नौ रूप हैं । इन विभिन्न आयामों के द्वारा माँ अपने भक्तों के दुखों का अंत कर उन्हें अभय प्रदान करती है । जय माँ शेरांवाली
पर्वतों के राजा “हिमालय” की पुत्री “शैलपुत्री” माँ दुर्गा का प्रथम रूप है । हिमालय की पुत्री होने से माँ का नाम शैलपुत्री कहा गया है । राजा हिमालय और उनकी पत्नी मेनाका को कड़ी तपस्या के फलस्वरूप माँ दुर्गा पुत्री के रूप में प्राप्त हुई । माता शैलपुत्री के दायें हाँथ में त्रिशूल और बाएं हाँथ में कमल का फूल दिखया गया है और माँ बैल की सवारी करती है ।
अपने भक्तों को ज्ञान प्रदान करने वाली माँ ब्रम्ह्चारिणी अपने दायें हाथ में एक जप माला और बाएं हाथ में एक कमंडल लिए रहती हैं । शिव को अपने वर रूप में प्राप्त करने हेतु, नारद मुनि के परामर्श से माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तप किया । दुर्गा माँ का यह रूप पवित्रतम और अत्यंत शक्तिशाली है । ब्रह्म तत्व को प्राप्त माता मुक्ति का मूर्त स्वरूप हैं । माँ ब्रम्ह्चारिणी भक्तों अभय प्रदान कर मुक्त करती हैं ।
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जिस प्रकार चन्द्रमा की शीतल रौशनी से सुख शांति प्राप्त होती है, ऐसे ही परम शांति प्रदान करने वाली है माँ चंद्रघंटा । यह माता दुर्गा का तीसरा रूप है । माँ दुर्गा के इस रूप की आराधना करने से साधक सुख, शांति व् आनंद को प्राप्त होता है । तेज़ स्वर्ण के समान माँ चंद्रघंटा सिंह की सवारी करती है । उनके दस हाँथ हैं जिनमे कई प्रकार के अस्त्र -शस्त्र जैसे खडग, तीर, बाण, त्रिशूल, गदा, तलवार, पद्म फूल आदि होते हैं । माँ चन्द्रघंटा अपने भक्तों के पाप कर्मों का नाश कर कल्याण करती है । उनकी घाटियों की भयानक आवाज़ से भूत पिशाच, राक्षस भाग खड़े होते हैं ।
कुष्मांडा माता दुर्गा का चौथा रूप है । माँ के इस रुप को सृष्टि का जन्मदाता कहा गया है । जब इस धरा पर कुछ भी नहीं था और हर दिशा में अंधकार ही अंधकार व्याप्त था उस समय माता कुष्मांडा ने सृष्टि को जन्म दिया । उस समय माता सूर्य लोक में निवास किया करती थीं । माँ कुष्मांडा से ही सृष्टि में ऊर्जा का सृजन है ऐसी मान्यता है । माता कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है । उनका वाहन सिंह है और माता के हांथों मैं कमंडल, चक्र, कमल का फूल, अमृत मटका, और जप माला सुशोभित हैं । माता कुष्मांडा को शुद्धता की देवी कहा गया है, उनकी पूजा करने से सभी प्रकार के रोगों और कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है ।
माँ दुर्गा का पांचवा रूप “स्कंदमाता” है । माँ दुर्गा ने देवताओं को उचित नेतृत्व और आशीर्वाद प्रदान करने हेतु भगवान् शिव से विवाह किया । असुरों और देवताओं के युद्ध होने के दौरान देवताओं को एक ऐसे मार्ग दर्शक की जरूरत थी जो समर्थ भी हो और शक्तिशाली भी । आदिनाथ व् माँ पार्वती के पुत्र कार्तिक जिन्हें स्कंद नाम से भी पुप्करा जाता है, ने देवताओं का नेतृत्व किया । अपने वाहन सिंह पर विराजमान माँ स्कंदमाता पुत्र स्कन्द को गोद में बैठा के रखती हैं । उनके 4 भुजाएं हैं । ऊपर के हाथ में माता कमल का फूल पकड़े रहती हैं और नीचे के एक हाथ से माँ वरदान देती हैं और दुसरे से कार्तिक को संभाले रखती हैं ।
दुर्गा माँ के छठे रुप को माँ कात्यायनी कहा जाता है । महिसासुर के अंत हेतु महृषि कात्यायन अपने ही आश्रम में कठोर तप में लीन थे ।आश्विन महीने के 14वें दिन पूर्ण रात्रि के समय महर्षि कात्यायन में भगवान ब्रह्मा,विष्णु, और महेश्वर एक साथ उनके समक्ष प्रकट हुए । तीनो त्रिमूर्ति ने मिलकर अपनी शक्ति से माता दुर्गा को प्रकट किया । महर्षि कात्यायना को ही सर्वप्रथम माता दुर्गा की पूजा का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इसलिए माता दुर्गा का नाम माँ कात्यायनी कहा जाता है और आश्विन माह की पूर्ण उज्जवल रात्रि सातवें, आठवें और नौवे दिन नवरात्री का त्यौहार मनाया जाता है । दसवें दिन को महिषासुर का अंत मानया जाता है । शुद्धता की देवी माता कात्यायनी के चार हाथ हैं । उनके उपरी दाहिने हाथ में माँ मुद्रा प्रदर्शित करती हैं जो डर से मुक्ति देता है, और निचले दाहिने हाथ से माँ भक्तों को आशीर्वाद देती है । माँ उपरी बाएं हाथ में तलवार और नीचले बाएं में कमल का फूल रखती है । इनकी पूजा अर्चना से भौतिक सुखों के साथ साथ मुक्ति भी प्राप्त होती है ।
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काला रंग, बिखरे उड़ते हुए बाल, अग्नि के सामान तेज से चमकता शरीर, और जो काल का विनाश कर दे ऐसी क्षमतावान “माँ कालरात्रि” दुर्गा का सातवां रूप हैं । माँ सब कुछ विनाश करने की क्षमता लिए हैं । कालरात्रि का अर्थ है अन्धकार की रात । माँ का वाहन गधा है और उनके ऊपर दायिने हाथ में वह आशीर्वाद देती मुद्रा में होती हैं और निचले दायिने हाथ से माँ निडरता प्रदान करती है । माँ अपने ऊपरी बाएं हाथ में गदा और निचले बाएं हाथ में लोहे की कटार रखती हैं । उनका प्रचंड रूप बहुत भयानक है परन्तु वह अपने भक्तों की सहायता को तत्पर रहती हैं । माँ कालरात्रि का एक और नाम भायांकारी भी है । उनकी पूजा अर्चना करने से भूत, सांप, आग, बाढ़ और भयानक जानवरों के भय से मुक्ति मिलती है ।
माँ दुर्गा का आठवां रूप है महागौरी । माँ पार्वती का रंग सावला था । कभी कभार भोलेनाथ उन्हें कालिके के नाम से पुकारा करते थे । इस बात से माँ नाराज भी हो जाया करती थीं । ऐसे ही एक बार माँ भलनाथ के मजाक से नाराज हो गयीं और उन्होंने घोर तप करने का निश्चय किया । बहुत समय बीत जाने पर भी माँ ने अपनी साधना जारी रख्खी जिसके कारन शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा के पानी को माता पार्वती के ऊपर डाल कर उन्हें गोरा रंग दिया । तब से माँ पार्वती को महागौरी के नाम से पूजा जाने लगा । माँ महागौरा का वाहन बैल है और उनके उपरी दाहिने हाथ से माँ आशीर्वाद देती हैं, निचले दायिने हाथ में त्रिशूल रखती है । माँ के उपरी बाएं हाथ में डमरू होता है और निचले हाथ से वह वरदान और अशोर्वाद प्रदान कर भक्तों का जीवन सुखमय बनाती हैं । ऐसी मान्यता है की जो माँ महागौरी की पूजा आराधना करता है उसे भय से मुक्ति मिलती है और जीवन से दुख व् कष्ट समाप्त हो जाते हैं ।
माता दुर्गा के नौवे रूप को सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है । ज्ञानीजनों का कहना है की उन्हें सिद्धिदात्री इसलिए कहा जाता है क्यूंकि इस रूप में माँ दुर्गा अपने भक्तों को सिद्धियां प्रदान करती हैं । माता सिद्धिदात्री की अनुकम्पा से ही शिवजी का रूप अर्धानारिश्वार हुआ । उनका वाहन सिंह और आसन कमल का फूल है । उनके उपरी दाहिने हाथ में माता गदा और निचले दाहिने हाथ में चक्रम सुशोभित है । माता अपने उपरी बाएं हाथ में एक कमल का फूल और निचले बाएं हाथ में एक शंख रखती हैं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सिद्धियां प्रदान कर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं ।