रत्न धारण करने से पूर्व इस तथ्य की जांच परम आवश्यक है की जिस गृह से संबंधित रत्न आप धारण करने जा रहे हैं वह गृह जन्मपत्री में किस अवस्था में है । यदि वह गृह मारक हो अथवा अशुभ भावस्थ हो या नीच राशि में जाकर स्थित हो गया हो तो ऐसी स्थिति में कोई भी रत्न धारण नहीं किया जाता । ऐसे ग्रह का रत्न धारण करना अपने पावं पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने जैसा है । रत्न केवल ऐसी अवस्था में धारण किया जाता है जब धारण किये जाने वाले रत्न से सम्बंधित गृह शुभ हो, शुभ स्थित भी हो और उसे ताकतवर बनाने की आवश्यकता हो । यहाँ यह भी आपसे सांझा करना बहुत आवश्यक हो जाता है की विपरीत राजयोग अथवा नीचभंग की स्थिति में भी गृह से सम्बंधित रत्न धारण नहीं किया जाता है ।
शुक्र गृह से सम्बंधित रत्न है हीरा । इसे सभी रत्नो में राजा की उपाधि प्राप्त है । यह बहुत अधिक शक्तिशाली रत्न माना गया है जो रंक से राजा बनाने की क्षमता अपने अंदर लिए रहता है । यदि यही रत्न बिना जन्मपत्री के उचित विश्लेषण के धारण कर लिया जाए तो जातक/जातिका को राजा से रंक भी बना सकता है ।
यदि हीरा उपलब्ध न हो तो इसके स्थान पर जरकन, फिरोजा, ओपल या कुरंगी में से कोई रत्न धारण किया जा सकता है ।
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सर्वप्रथम अपनी जन्मपत्री का सूक्ष्म विश्लेषण किसी योग्य ज्योतिषी से करवाएं और यदि वह सलाह दे तो ही कोई रत्न धारण करें । जन्मपत्री का विश्लेशण लग्न के आधार पर किया जाता है । विश्लेषण के आधार पर यदि रत्न धारण करना उचित पाया जाए तो ही किसी रत्न को धारण करने की सलाह दी जाती है । जो गृह जातक/जातिका की जन्मपत्री में कारक अथवा शुभ हो और शुभ भाव में स्थित हो, साथ ही अपनी नीच राशि में न हो तो ही सम्बंधित गृह का रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है । आज हम आपसे सांझा करेंगे की मेष से लेकर मीन लग्न की कुंडली में किन किन भावों में स्थित होने पर शुक्र रत्न हीरा धारण किया जा सकता है और किन लग्न कुंडलियों में नहीं …
मेष लग्न की जन्मपत्री में शुक्र द्वितीयेश सप्तमेश होकर एक मारक गृह बनते हैं । मारक गृह का रत्न धारण नहीं किया जाता ।
वृष लग्न में शुक्र लग्नेश व् षष्ठेश हैं । लग्नेश होने की वजह से शुक्र एक शुभ गृह हैं । यदि छह, आठ अथवा बारहवें भाव में न हों और साथ ही अपनी नीच राशि कन्या में स्थित न हों तो हीरा रत्न धारण किया जा सकता है ।
मिथुन लग्न की जन्मपत्री में शुक्र पंचमेश द्वादशेश हैं, एक कारक गृह हैं । यदि शुक्र अपनी नीच राशि में अथवा छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित न हों तो हीरा रत्न धारण किया जा सकता है ।
कर्क लग्न की कुंडली में शुक्र चतुर्थेश एकादशेश होकर एक सम गृह बने । चौथे, सातवें, नवें व् ग्यारहवें भाव में से किसी में स्थित हों तो धारण किये जा सकते हैं । अन्य किसी भाव में हीरा धारण करने की सलाह हम नहीं देते ।
सिंह लग्न की कुंडली में शुक्र तृतीयेश व् दशमेश होकर एक सम गृह बनते हैं । शुक्र लग्नेश सूर्य के अति शत्रु हैं । कुछ विशेष परिस्थितियों में ही हीरा धारण किया जा सकता है और वह भी किसी योग्य ज्योतिष विद्वान् की सलाह के साथ ।
कन्या लग्न की कुंडली में शुक्र द्वितीयेश नवमेश होकर एक योगकारक गृह बने । शुक्र लग्नेश बुद्ध के अति मित्र भी हैं । यदि शुक्र लग्न में अथवा तीन, छह, आठ या बारहवें भाव में स्थित न हों तो हीरा रत्न धारण किया जा सकता है ।
लग्नेश हमेशा शुद्ध होता है । यदि अशुभ स्थित न हो तो हीरा धारण किया जा सकता है ।
वृश्चिक लग्न की कुंडली में शुक्र सप्तमेश द्वादशेश हैं, एक मारक गृह बनते हैं । हीरा रत्न किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जा सकता है ।
धनु लग्न की कुंडली में शुक्र षष्ठेश एकादशेश हैं, एक मारक गृह बनते हैं । हीरा धारण नहीं किया जा सकता ।
मकर लग्न की कुंडली में शुक्र पंचमेश दशमेश होते हैं, साथ ही लग्नेश शनि के अति मित्र हैं । यदि शुक्र शुभ स्थित हो जाएँ तो हीरा रत्न धारण किया जा सकता है । छह, आठ अथवा बारहवें भाव में स्थित नहीं होने चाहियें ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में शुक्र चतुर्थेश नवमेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । यदि छह, आठ अथवा बारहवें भाव अथवा नीच राशि में स्थित न हों तो धारण किये जा सकते हैं ।
मीन लग्न की कुंडली में शुक्र तृतीयेश अष्टमेश होकर एक मारक गृह बनते हैं । मारक गृह से सम्बंधित रत्न किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जाता ।
हीरा रत्न सोने की अंगूठी में जड़वाकर मध्यमा ऊँगली में शुक्रवार के दिन चढ़ते पक्ष में धारण किया जाता है । इसके पूर्व अंगूठी में प्राण प्रतिष्ठा का विधान है । इसका शुद्धिकरण करने के लिए इसे दूध या गंगाजल में डुबाकर रख्खा जाता है । अंगूठी को निकाल कर ॐ शं शुक्राय नम: का 108 बारी जप करें और इसके पश्चात्य अपणु मध्यमा ऊँगली में धारण करें । यहाँ एक बार फिर से आपको याद दिला दें की इस रत्न को धारण करने से पूर्व किसी योग्य विद्वान् से कुंडली का विश्लेषण करवाना न भूलें अन्यथा आपको लाभ होने के बजाये नुक्सान पहुँच सकता है ।
ध्यान देने योग्य है की कौतूहलवश कोई भी रत्न धारण नहीं करना चाहिए । यहाँ ये भी बता दें की कोई भी रत्न लग्न कुंडली का विश्लेषण करने के बाद रेकमेंड किया जाता है न की चंद्र कुंडली के आधार पर । चंद्र कुंडली को आधार बनाकर अथवा राशि पर आधारित रत्न किसी भी सूरत में धारण न करें ।
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