कर्क लग्न की जन्मपत्री में गजकेसरी योग निसंदेह बनता है । इस जन्मपत्री में चंद्र प्रथम भाव के स्वामी यानी लग्नेश होते हैं, एक योगकारक गृह बनते हैं । इसी प्रकार गुरु षष्ठेश, नवमेश होकर एक योगकारक गृह बनते हैं । दोनों ग्रहों के विभिन्न भावों में स्थित होने पर इस योग के शुभ फल जातक को प्राप्त होते हैं….
ऐसा जातक बहुत आकर्षक होता है । गुरु की दशाओं में प्रथम सप्तम व् नवम भाव सम्बन्धी शुभ फल प्राप्त होते हैं । चंद्र की दशाओं में प्रथम व् सप्तम भाव सम्बन्धी शुभ फलों में बढ़ौतरी होती है । ऐसा जातक बहुत बुद्धिमान होने के साथ साथ ही क्रिएटिव भी होता है । गुरु की दशाओं में प्रेम विवाह के योग बनते है । गजकेसरी योग अवश्य बनता है ।
गुरु की दशाओं में धन लाभ होता है प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त होती है, रुकावटें दूर होती हैं, भाग्य का साथ प्राप्त होता है, लाभ होता है । चंद्र की दशाओं में रुकावटें दूर होती हैं, धन का आगमन होता है । गजकेसरी योग बनता है ।
तीसरे भाव में गुरुचंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता, परिश्रम के बाद अल्प मात्रा में लाभ होता है । गजकेसरी योग नहीं बनता ।
चतुर्थ भाव में गजकेसरी योग अवश्य बनता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक को परिवार का साथ प्राप्त होता है । सुख सुविधाओं में वृद्धि होती है । नए मकान, वाहन का योग भी बनता है । ऐसे जातक का माता से बहुत लगाव होता है ।
इस भाव में चंद्र वृश्चिक राशि में आने से नीच के हो जाते हैं तो चन्द्रमा की दशाओं में प्रेम संबंधों में असफलता के चान्सेस अधिक होते हैं । जातक मानसिक रूप से परेशान रहता है । अचानक घाटा ( नुक्सान ) होने की संभावनाएं बनती हैं । गुरु की दशाओं में प्रेम विवाह के योग बनते हैं, भाग्य जातक का साथ देता है, अचानक लाभ होते हैं ।
त्रिक भावों में कोई योग नहीं बनता । यहाँ गुरु का स्थित होना भाग्य, नौकरीव धन के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता । लग्नेश चंद्र के छठे भाव में आने से चंद्र की दशाओं में जातक अस्वस्थ हो सकता है ।
चंद्र की दशाओं में अधिकतर शुभ फल प्राप्त होते हैं । लाइफ पार्टनर और बिज़नेस पार्टनर के साथ संबंधों में मधुरता रहती है । साझेदारी के व्यापार से लाभ होने की सम्भावना बढ़ जाती है । जातक का स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है । गुरु यहाँ अपनी नीच राशि के होने की वजह से शुभ फलदायक नहीं होते हैं । व्यापार से हानि के योग बनाते हैं । लाभ में कमी रहती है, फिजूल की यात्राएं होती हैं, भाग्य का साथ नहीं मिलता, जातक अस्वस्थ रहता है ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । इस भाव में गुरु चंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है ।
चन्द्र्गुरु की नवम भाव में युति से गुरु की दशाओं में जातक का पिता से बहुत लगाव होता है, परिश्रम का फल भी अवश्य प्राप्त होता है, जातक का भाग्य उसका भरपूर साथ देता है । यात्राओं से लाभ होता है उच्च शिक्षा प्राप्ति व् पुत्र प्राप्ति के योग बनते हैं । चंद्र की दशाएं भी भाग्यवर्धक होती हैं ।
चन्द्र गुरु की दशाओं में सभी सुःख प्राप्त होते हैं । जातक का माता से बहुत लगाव होता है । गुरु की दशाएं प्रतियोगिताओं में सफलतादायक होती हैं । धन लाभ होता है ।
चंद्र की दशाओं में पुत्री व् गुरु की दशाओं में पुत्र का योग बनता है । चंद्र की दशाओं में अचानक लाभ होने के योग बनते हैं । वहीँ गुरु की दशाएं उन्नति लेकर आती हैं, लव मैरिज होती है, व्यापार साझेदारी से लाभ प्राप्त होता है, जातक के परिश्रम का उचित फल प्राप्त होता है ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । बारहवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता ।
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