मिथुन लग्न की जन्मपत्री में गुरु सातवें और दसवें भाव के स्वामी होकर एक सम गृह बनते हैं । चंद्र दुसरे भाव के स्वामी हैं और लग्नेश बुद्ध के शत्रु के रूप में जाने जाते हैं, इसलिए इस जन्मपत्री में एक अकारक गृह बनते हैं । चंद्र के अकारक होने की वजह से इस जन्मपत्री में गजकेसरी योग नहीं बनेगा । यधपि गुरु विभिन्न भावों में अपनी प्लेसमेंट के अनुसार अधिकांशतया शुभ फल ही प्रदान करते हैं ….
चंद्र की दशाओं में जातक बहुत परेशानियां झेलता है । धन का व्यय होता रहता है । गुरु की दशाओं में जातक के लव मैरिज के योग बनते हैं, नौकरी व्यापर से लाभ होता है, भाग्य का भरपूर साथ प्राप्त होता है ।
गुरु की दशाओं में धन लाभ होता है प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त होती है, रुकावटें दूर होती हैं, राज्य से सम्मान मिलता है । चंद्र की दशाओं में किसी कुटुंबजन को कष्ट हो सकता है, भाग्य का साथ नहीं मिलता, पिता से भी अनबन रहती है ।
तीसरे भाव में गुरुचंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता, केवल व्यर्थ का परिश्रम और व्यर्थ यात्राएं होती हैं ।
यदि चतुर्थ भाव किसी प्रकार से कमजोर हो गुरु की दशाओं में जातक के विदेश में नौकरी के योग बनते हैं । परन्तु गजकेसरी योग नहीं बनता । चन्द्रमा की दशाओं में पारिवारिक सुख में कमी आती है ।
चन्द्रमा दशाओं में प्रेम संबंधों में असफलता के चान्सेस अधिक होते हैं । जातक मानसिक रूप से परेशान रहता है । अचानक घाटा ( नुक्सान ) होने की संभावनाएं बनती हैं । गुरु की दशाओं में प्रेम विवाह के योग बनते हैं, भाग्य जातक का साथ देता है, अचानक लाभ होते हैं ।
त्रिक भावों में कोई योग नहीं बनता । यहाँ गुरु का स्थित होना नौकरी के लिए शुभ कहा जा सकता है । लाइफ पार्टनर्स के लिए यहाँ गुरु की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती ।
चंद्र की दशाओं में अधिकतर अशुभ फल प्राप्त होते हैं । लाइफ पार्टनर और बिज़नेस पार्टनर के साथ संबंधों में परेशानियां आती हैं । साझेदारी के व्यापार में नुक्सान होने की सम्भावना रहती है । जातक का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता । गुरु यहाँ स्वराशि के होने की वजह से शुभ फलदायक होते हैं । व्यापार से लाभ के योग बनाते हैं । थोड़ी भाग दौड़ हो सकती है लेकिन यात्राओं से लाभ भी होता है ।
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । इस भाव में गुरु चंद्र की युति से कोई योग नहीं बनता है ।
चन्द्र्गुरु की नवम भाव में युति से चन्द्रमा की दशाओं में जातक की पिता से नहीं निभती, परिश्रम का फल भी बहुत मुश्किल से ही प्राप्त होता है, जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता । यहाँ स्थित गुरु की दशाओं में जातक को भाग्य का साथ प्राप्त होता है, यात्राओं से लाभ होता है उच्च शिक्षा प्राप्ति के योग बनते हैं ।
चन्द्र की दशाओं में सुख के साधनो की प्राप्ति के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है । यदि लोन लेकर भूमि, मकान या वाहन की सुविधा प्राप्त की हो तो चंद्र की दशा में ऋण चुकाने के लिए बहुत खपना पड़ता है । जातक सुःख का अनुभव नहीं कर पाता । माता पिता से मन मुटाव रहता है । गुरु की दशाओं में सभी सुःख प्राप्त होते हैं । जातक का माता से बहुत लगाव होता है । गुरु की दशाएं प्रतियोगिताओं में सफलतादायक होती हैं ।
यहाँ से गुरु पुत्र व् चंद्र पुत्री का योग बनाते हैं । चंद्र की दशाओं में अचानक हानि होने के योग बनते हैं । हालांकि धन का आगमन होता रहता है । गुरु की दशाएं उन्नति लेकर आती हैं, लव मैरिज होती है, व्यापार साझेदारी से लाभ प्राप्त होता है ।
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । बारहवें भाव में गजकेसरी योग नहीं बनता ।
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