योगों की क्रमबद्ध श्रृंखला को जारी रखते हुए अब हम बुद्धादित्य योग पर चर्चा आरम्भ करने जा रहे हैं । यह योग बुद्ध और आदित्य ( सूर्य ) के संयोग से बनता है । जिस जातक की जन्मपत्री में यह योग होता है वह बुद्ध या सूर्य या दोनों की महादशा में अवश्य उन्नति करता है । ऐसे जातक बुद्धिमान, धन धान्य से परिपूर्ण, समाज में प्रतिष्ठित व् सभी सुखों को भोगने वाले होते हैं । जब बुद्ध व् सूर्य योगकारक गृह होकर लग्न कुंडली के किसी शुभ भाव में एकसाथ विराजमान हो जाएँ तो बुद्धादित्य योग की निर्मिति कही जाती है । यह योग कितने प्रतिशत परिणाम देने में सक्षम है इस बात का अनुमान लगाने के लिए ग्रहों का बलाबल देखा जाता है । मेष लग्न की कुंडली में सूर्य पंचम भाव के स्वामी होकर एक अति योगकारक गृह बनते हैं वहीँ बुद्ध तीसरे व् छठे भाव के स्वामी तथा लग्नेश के अति शत्रु होने की वजह से एक अकारक गृह बनते हैं । बुद्ध यदि विपरीत राजयोग की स्थिति में भी आ जाएँ तब भी बुद्धादित्य योग नहीं बनता है । मेष लग्न की कुंडली में सूर्य व् बुद्ध की युति कैसे परिणाम प्रदान करती है इसका विश्लेषण आगे किया जा रहा है । कृपया हमारे साथ बने रहिये…..
मेष लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में बुद्ध हों तो बुद्ध की दशाओं में जातक का स्वास्थ्य खराब रहने के योग बनते हैं, पार्टनरशिप से घाटा होता है । सूर्य लग्नमें हों तो उनकी दशाओं में जातक की बुद्धि श्रेष्ठ स्तर पर होती है, पुत्र प्राप्ति का योग बनता है और व्यापार में पार्टनरशिप से लाभ प्राप्ति के योग बनते हैं । मेष लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में बुद्धादित्य योग नहीं बनता है ।
मेष लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव में बुद्धादित्य योग नहीं बनता है । दुसरे भाव में सूर्य बुद्ध की युति होने पर बुद्ध की महादशा में कुटुंब में किसी परिजन का स्वास्थ्य खराब होता है और सूर्य की दशाओं में कुटुंब की प्रतिष्ठा बढ़ने, पुत्र संतान होने का योग बनता है ।
सूर्यबुद्ध की युति तीसरे घर में होने पर बुद्ध व् सूर्य दोनों की दशाओं में बहुत मेहनत करने के बाद ही भाग्य का साथ प्राप्त होता है । यहाँ भी सूर्य की दशाओं में परिणाम बेहतर आते हैं, जातक विदेश यात्राएं करता है, पिता का सम्मान करने वाला होता है ।
सूर्यबुद्ध की युति यदि चतुर्थ भाव में हो तो बुध की दशाओं में माता का स्वास्थ्य खराब रहने के योग बनते हैं और मकान, वाहन व् भूमि का सुख प्राप्त नहीं हो पाता । सूर्य की दशाओं में मकान, वाहन व् भूमि का सुख प्राप्त होता है । जातक का माता से बहुत लगाव होता है ।
पंचम भाव में युति से सूर्य स्वग्रही हो जाते हैं और अपनी दशाओं में पुत्र प्राप्ति का योग बनाते हैं, बड़े भाई बहन से लाभ प्राप्त करवाते हैं । बुद्ध की दशाओं में पुत्री प्राप्ति का योग बनता है और बड़े भाई बहन से क्लेश के योग बनते हैं । इस प्रकार पंचम भाव में बुद्धादित्य योग नहीं बनेगा ।
यदि लग्नेश मंगल बलशाली हों और शुभ स्थित भी हों तो बुद्ध विपरीत राजयोग की स्थिति में आकर शुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं लेकिन सूर्य की दशाओं में संतान का स्वास्थ्य खराब रहने के योग बनते हैं । बुद्धादित्य योग नहीं बनता ।
इस भाव में सूर्य नीच अवस्था में आ जाते हैं और बुद्ध अकारक होकर सप्तम भाव में आये हैं तो अनिष्टता के घोतक हैं । सप्तम भाव में किसी भी सूरत में बुद्धादित्य योग नहीं बनेगा ।
आठवाँ भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ भी बुद्धादित्य योग नहीं बनेगा । यदि लग्नेश मंगल बलशाली हों और शुभ स्थित भी हों तो बुद्ध विपरीत राजयोग की स्थिति में आकर शुभ फलों में वृद्धिकारक होते सकते हैं ।
यहाँ सूर्य की दशाओं में जातक के उच्च शिक्षा ग्रहण के योग बनते हैं, विदेश यात्राओं से लाभ होता है, जातक पिता का सम्मान करता है । बुद्ध की दशाओं में पिता का स्वास्थ्य खराब रहने के योग बनते हैं । मेहनत का लाभ कम ही मिलता है ।
सूर्य की दशाओं में उन्नति के योग बनते हैं । जातक भूमि, मकान व् वाहन का सुख भोगता है । बुद्ध की दशाओं में परिवार का सुख न के बराबर ही मिलता है । मकान, वाहन, भूमि से परेशानी के योग बनते हैं । मेष लग्न की कुंडली में दसवें भाव में बुद्धादित्य योग नहीं बनेगा ।
सूर्य की दशाओं में प्रेम संबंधों में सफलता मिलती है, बड़े भाई बहन से सम्बन्ध मधुर रहते हैं और अचानक लाभ भी प्राप्त होते हैं । बुद्ध यहाँ भी नकारात्मक प्रभाव रखते हैं । मेष लग्न की कुंडली में ग्यारहवें भाव में बुद्धादित्य योग नहीं बनता ।
त्रिक भावों में से किसी भी भाव में बुद्धादित्य योग योग नहीं बनता ।
आशा है की उपरोक्त विषय आपके लिए ज्ञानवर्धक रहा । आदियोगी का आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो । ( Jyotishhindi.in ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।