तुला लग्न की कुंडली में चंद्र दसवें भाव के स्वामी हैं । तुला लग्नं में एक सम गृह बनते हैं । मंगल दुसरे और सातवें भाव के स्वामी हैं, इस वजह से मंगल एक अकारक गृह बने । इस प्रकार चंद्र व् मंगल दोनों ही अपनी दशाओं में जातक को अधिकतर अशुभ फल ही प्रदान करते हैं । परन्तु कुछ स्थितियों में चन्द्रमंगल शुभ फल भी प्रदान करते हैं । जानने काप्रयास करते हैं की तुला लग्न की कुंडली के विभिन्न भावों में चन्द्रमंगल के एक साथ स्थित होने पर कैसे परिणाम आने की सम्भावना रहती है और यदि किसी भाव में महालक्ष्मी योग बनने की सम्भावना है तो वह भाव कौन सा है और क्या कारण है की एक गृह के अकारक होने पर भी महालक्ष्मी योग निर्मित हो जाता है ….
लग्न में स्थित चंद्र जातक को आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बनाता है, साथ ही अपनी महादशा में सातवें भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है । मंगल अपनी दशाओं में दुसरे, चौथे, और आठवें भाव सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करते ही दीखते है । यधपि मंगल सप्तम भाव सम्बन्धी शुभ फल प्रदान करते हैं । तुला लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में चन्द्रमंगल की युति जातक की निर्णय क्षमता को कमजोर करती है और यहाँ महालष्मी योग नहीं बनेगा ।
द्वितीयस्थ स्वग्रही मंगल धन परिवार कुटुंब को/से लाभ पहुंचाते हैं । मंगल की चतुर्थ से पुत्र प्राप्ति का योग बनता है बनता है , जातक झगड़ालू होता है, सातवीं दृष्टि से अष्टम भाव को देखने की वजह से हर काम में रुकावटें आती हैं, आठवीं दृष्टि से विदेश यात्रा का योग बनाता है परन्तु लाभ में बहुत कमी रहती है या लाभ होता ही नहीं । वहीँ चंद्र की महादशा अन्तर्दशा में जातक की कुटुंब सम्बन्धी परेशानियां बढ़ती है । यधपि चंद्र का नीच भंग हो जाता हैं लेकिन वो दुसरे व् आठवें भाव सम्बन्धी अशुभ ही फल प्रदान करते हैं । महालक्ष्मी योग कदापि नहीं बनेगा ।
तुला लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में भी महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा । मंगल अपनी दशाओं में पराक्रम में वृद्धि करता है, परिश्रम करवाता है, जातक का काम यात्राओं से जुड़ा हो सकता है, पिता व् गुरुजनों से अनबन रहती है । मंगल की महादशा में जातक परिश्रम बहुत करता है लेकिन उस अनुपात में लाभ बहुत कम रहते हैं । चंद्र भी तीसरे व् नौवें भाव सम्बन्धी अशुभ फलों में वृद्धि करते हैं । वर्किंग प्लेस में भी समस्याएं बनी ही रहती हैं ।
चंद्र अपनी दशा अन्तर्दशा में जातक का माता से मन मुटाव बनाये रखते हैं, परिवार के सुख में कमी होती है । मंगल की दशाओं में जातक माता से मनमुटाव बढ़ता है, डिमोशन हो सकती है, मकान, वाहन, भूमि से हानि होने की सम्भावना बनती है । मंगल की दशाओं में मंगल के अन्य भावों के साथ दृष्टि सम्बन्ध से भी अशुभ फल प्राप्त होते हैं, बड़े भाई बहन से भी सम्बन्ध खराब हो जाते हैं । क्यूंकि चंद्र सप्तम दृष्टि से अपने ही दशम भाव को देखते हैं तो काम काज को थोड़ा ठीक बनाये रखते हैं ।
चन्द्रमा की दशाओं में अचानक हानि होती है । बुद्धि शांत नहीं रहती है । मन खिन्न रहता है । यहाँ स्थित मंगल अपनी दशाओं में अधिकतर नुक्सान ही पहुंचते हैं । प्रेम संबंधों में जातक असफल होते हैं, अचानक हानि पहुंचाते हैं । बड़े भाई बहन से अनबन बनी रहती है । चन्द्रमंगल अपने बलाबल के अनुसार पुत्र पुत्री का योग बनाते हैं । महालक्ष्मी योग नहीं बनता है ।
छठा भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ स्थित होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता देखा गया है । इस प्रकार छठे भाव में चन्द्रमंगल की युति से महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा । जातक को नौकरी करनी हे पड़ती है । पार्टनरशिप नहीं करनी चाहिए । त्रिक भाव में महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा ।
मंगल की दशाओं में सातवें व् दुसरे भाव सम्बन्धी शुभ फल प्राप्त होते हैं । वहीँ मंगल के अन्य भावों के साथ दृष्टि सम्बन्ध से अशुभ फल प्राप्त होते हैं । चंद्र सम गृह है तो मित्र राशि में आने से सप्तम व् प्रथम भाव सम्बन्धी शुभ फल प्रदान करता है । महालष्मी योग यहाँ भी नहीं बनता है ।
आठवाँ भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । यहाँ स्थित होने पर चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता है । जातक मृत्यु तुल्य कष्ट भोगता है । कुटुंब व् छोटे भाई बहन से क्लेश बढ़ता है । यहाँ महालक्ष्मी योग नहीं बनता ।
नवम भाव जन्मकुंडली का एक शुभ भाव माना जाता है । क्यूंकि दोनों जन्मकुंडली के कारक गृह नहीं हैं और मिथुन राशि दोनों ही ग्रहों की शत्रु राशि है तो यहाँ स्थित होने पर महालक्ष्मी योग नहीं बनता है। यात्राओं से लाभ नहीं होता और मंगल के अन्य भावों से दृष्टि सम्बन्ध भी अशुभता में ही वृद्धि करते हैं । साथ ही चंद्र भी अपनी दशाओं में नौवें, दसवें व् तीसरे भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है । पिता की छत्रछाया में जातक थोड़ी तरक्की करता है लेकिन वहां भी मेहनत बहुत करनी पड़ती है, तो परेशान रहता है ।
इस भाव में चंद्र मंगल की युति होने पर चंद्र की महादशा में जातक के प्रोफेशन में उन्नति होती है लेकिन मंगल की दशाओं में
प्रोफेशन व् चतुर्थ, पंचम भाव सम्बन्धी अशुभ फल प्राप्त होते हैं । राज्य से हानि होती है, सुखों में कमी आती है व् माता,पिता से अनबन रहती है । मंगल चौथे, पांचवें, दसवें भावों सम्बन्धी अशुभ फल प्रदान करता है । यहाँ भी महालक्ष्मी योग नहीं बनता है ।
मंगल व् चंद्र के ग्यारहवें भाव में स्थित होने पर महालक्ष्मी योग बनता है । मंगल दुसरे भाव के स्वामी होकर ग्यारहवें भाव में स्थित है और चंद्र दसवें भाव के मालिक हैं और ग्यारहवें भाव में स्थित हैं तो मंगल धन की वृद्धि करते हैं और चंद्र प्रोफेशनल उन्नति करवाता है । ऐसा जातक चंद्र की महादशा अन्तर्दशा में भी दसवें, ग्यारहवें भाव सम्बन्धी शुभ फल प्राप्त करता है । यदि चंद्र का बलाबल अधिक हो तो पुत्री प्राप्ति का योग बनता है यदि मंगल बलवान हो तो पुत्र का योग बनता है ।
तुला लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में महालक्ष्मी योग नहीं बनेगा क्यूंकि बारहवां भाव भाव् त्रिक भाव में से एक भाव होता है, शुभ नहीं माना जाता है । चंद्र व् मंगल दोनों की महादशा में जातक पीड़ा ही भोगता है ।
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