भारतीय ज्योतिष में जन्मकुंडली के बारह भावों की रचना बारह राशियों के आधार पर की गई है । इन्हें द्वादश भाव कहा गया है । जन्म कुंडली या जन्मांग जातक के जन्म समय का स्क्रीन शॉट है अर्थात जन्मांग चक्र जातक के जन्म समय की स्थिति को दर्शाता है । प्रत्येक भाव हमारे जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, घटनाओं की जानकारी हमें प्रदान करता है । शास्त्रों में 12 भावों के स्वरूप हैं और भावों के नाम के अनुसार ही इनका काम होता है। पहला भाव तन, दूसरा धन-कुटुंब , तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ मकान वाहन भूमि सुख, पंचम पुत्र, छठा ऋण रोग शत्रु, सप्तम रिपु बिज़नेस दैनिक आय साझेदारी, आठवाँ आयु ससुराल, नवम धर्म पिता, दशम कर्म, एकादश आय और द्वादश व्यय भाव कहलाता है़। आज हम दशम भाव से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को जानने का प्रयास करेंगे ।
दशम भाव Tenth house : कुंडली के प्रत्येक भाव भावेश का हमारे जीवन व् जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं पर गहरा असर पड़ता है । आज हम कुंडली के दसवें भाव से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे । कहते हैं की मनुष्य अपने कर्मो से जाना जाता है । अतः कहा जा सकता है मनुष्य के कर्म उसकी पहचान बनाते हैं । जातक को समाज में मान सम्मान, प्रतिष्ठा की नजर से देखा जाता है या हेय दृष्टि से, इसमें बहुत कुछ दसवें भाव पर निर्भर करता है । दसवें भाव को कर्म भाव भी कहा जाता है । असेंडेंट की हैसियत क्या है , क्या ये प्रतिष्ठित है, क्या समाज में इसका मान है, इसके अधिकार क्या हैं, यह किस प्रकार के शौक रखता है, इसका पैशन क्या है, चैन की नींद आती है या नहीं, कृषि, सफलता, संन्यास, यश, पिता आदि विषयों का विचार दशम भाव से किया जाता है । शरीर के अंगों में दशम भाव से घुटने देखे जाते हैं । दशम भावस्थ शुभ गृह हमारे कर्मो को उत्तम बनाते हैं । भारतीय ज्योतिष में ऐसी धारणा है की यदि तीन, छह, दस या ग्यारहवें भाव में पाप गृह हों तो शुभ फल प्रदान करते हैं । इस आधार पर कहा जा सकता है की दसवें भाव में सूर्य, शनि, मंगल, राहु या केतु स्थित होने पर इनकी दशा अन्तर्दशा में शुभ फलों की प्राप्ति होती है । रवि की दशम में उपस्थिति को श्रेष्ठ कहा गया है । दशम भाव में सूर्य को दिशा बल प्राप्त है । यह स्थिति अधिकार योग के निर्माण में सहायक है । शनि कर्म प्रधान गृह है । इसलिए शनि की दशम भाव में स्थिति को उत्तम माना जाता है । ऐसा जातक बहुत मेहनत से अपना काम करता है । दशमस्थ राहु को बहुत शुभ कहा गया है । मंगल की दशम में स्थिति जातक को तीव्र बुद्धि , मकान वाहन से संपन्न डैशिंग पर्सनालिटी का मालिक बनाती है । दुसरे छठे व् दसवें भाव से मिलकर अर्थ त्रिकोण का निर्माण होता है और पृथ्वी तत्व होने की वजह से जातक के कर्म से अर्थ का सृजन कहा गया है ।
कुटुंब का भाग्य भाव होने की वजह से कुटुंब का धर्म व् भाग्य इस भाव से देखा जाता है , छोटे भाई-बहनों के ऋण रोग दुर्घटना के लिए दशम भाव का विश्लेषण किया जाता है, नवम से द्वितिय भाव होने के कारण पिता के संचित धन की जानकारी इस भाव से प्राप्त होती है, संतान की बीमारियों को समझने के लिये दशम भाव का प्रयोग किया जा सकता है, जीवनसाथी के वाहन सुख का विचार भी इस भाव से किया जाता है ।
बडे भाई-बहनों की विदेश यात्रा या हास्पिटलाइज़ेशन का संबन्ध दशम घर से होता है । छोटे मामा की संतान की जानकारी के लिए भी दशम भाव को जांचना आवश्यक हो जाता है ।