कुंडली में उचित प्रकार से स्थित राहु जातक को मात्र भक्त , शत्रुओं का पूर्णतया नाश करनेवाला , बलिष्ठ , विवेकी , विद्वान , ईश्वर के प्रति समर्पित , समाज में प्रतिष्ठित व् धनवान बनाता है । इसके विपरीत यदि राहु लग्न कुंडली में उचित प्रकार से स्थित न हो तो अधिकतर परिणाम अशुभ ही प्राप्त होते हैं । आज हम वृष लग्न की कुंडली के सभी भावों में राहु के परिणाम जानने का प्रयास करेंगे ……..
वृष राहु की उच्च राशि है । यदि वृष राशि में लग्न में राहु हो तो अधिकतर परिणाम शुभ ही प्राप्त होंगे । राहु की महादशा में स्वास्थ्य अच्छा रहता है , पेट खराब नहीं रहता है , संतान प्राप्ति का योग बनता है , अचानक लाभ होता है । दाम्पत्य जीवन में खुशियां रहती है , साझेदारी के काम में लाभ होता है , पिता से संबंध मधुर रहते हैं , जातक आस्तिक , विदेश यात्राएं करने वाला होता है ।
मिथुन भी राहु की उच्च राशि है । ऐसे जातक का मन प्रसन्न रहता है , धन , परिवार कुटुंब का साथ मिलता है । जातक की वाणी थोड़ी खराब हो सकती है । प्रतियोगिता में सफल होता है । रुकावटें दूर होती है । प्रोफेशनल लाइफ में सफलता मिलती है ।
कर्क राहु की शत्रु राशि होती है । छोटे – बड़े भाई बहनों से कलह रहती है । जातक का भाग्य उसका साथ नहीं देता है । पितृभक्त , धार्मिक प्रवृत्ति का नहीं होता है। दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता है , साझेदारी के काम में लाभ नहीं मिलता है ।
चतुर्थ भाव में शत्रु राशि सिंह में आने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख नहीं मिलता है । रुकावटें दूर होने का नाम नहीं लेती है । काम काज भी बेहतर स्थिति में नहीं होता है । विदेश सेटलमेंट की सम्भावना बनती है ।
बुद्ध की राशि कन्या में राहु जातक को बहुत बुद्धिमान बनाते हैं । संतान प्राप्ति का योग बनता है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध संतोषजनक रहते हैं । जातक की याददाश्त बहुत अच्छी होती है और ऐसा जातक आस्तिक व् पितृ भक्त होता है । बुद्ध ठीक स्थित होने पर सभी परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं अन्यथा परिणाम अशुभ जानने चाहियें ।
कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है । वाणी खराब , परिवार का साथ नहीं मिलता है ।
वृश्चिक राशि राहु की नीच राशि होती है । अतः यहां राहु से मिलने वाले परिणामों में अशुभता आ जाती है । जातक कुशाग्र बुद्धि , मेहनती , वाणी अच्छी बोलने वाला , छोटे – बड़े भाई बहनो और परिवार का साथ पाने वाला नहीं होता है । पत्नी और साझेदारों से संबंध खराब हो जाते हैं ।
यहां राहु के अष्टम भाव में स्थित होने से व् अपनी नीच राशि धनु में आने से जातक के हर काम में रुकावट आती है । राहु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है । पिता से संबंध खराब होते हैं, फिजूल खर्चा होता है , परिवार का साथ नहीं मिलता है । सुख सुविधाओं का अभाव रहता है । विदेश सेटलमेंट हो सकती है ।
जातक बुद्धिमान , धार्मिक , पितृ भक्त , उत्तम संतान युक्त होता है । मेहनत का फल अवश्य मिलता है। विदेश यात्रा करता है । शनि अशुभ स्थित हों तो परिणाम अशुभ जानने चाहियें ।
शनि शुभ स्थित हों तो यहां मित्र राशि कुम्भ में आने से जातक को भूमि , मकान , वाहन का सुख मिलता है । काम काज बहुत अच्छा चलता है । परिवार साथ देता है , प्रतियोगिता में जीत होती है ।
शत्रु राशि मीन में स्थित होने पर बड़े भाई बहनो से स्नेह नहीं रहता है । संतान प्राप्ति में विलम्ब आवश्य होता है , पेट खराब रहता है । राहु की महादशा में अचानक धन लाभ की संभावना नहीं बनती है । पत्नी साझेदारों से लाभ प्राप्त नहीं होता है ।
मेष राशि व् द्वादश भाव में स्थित होने से व्यय बढ़ता है , बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । कम्पटीशन में असफलता हाथ लगती है , भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । विदेश यात्रा , सेटलमेंट का योग बनता है । सभी कार्यों में रूकावट आती है और टेंशन-डिप्रेशन लगातार बना रहता है ।