मेष लग्न कुंडली में देव गुरु वृहस्पति नवमेश , द्वादशेश होते हैं । देव लग्न की कुंडली के त्रिकोण में देव गुरु की मूल राशि आती है । अतः इस लग्न कुंडली में गुरुएक कारक गृह हैं । ऐसी स्थिति में गुरु जिस भाव में स्थित होते हैं , और जिस भाव से दृष्टि संबंध बनाते हैं उन भावों से सम्बंधित फलों को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करते हैं और और फलों में वृद्धि करते हैं । मेष लग्न की कुंडली में यदि गुरु बलवान ( डिग्री से भी ताकतवर ) होकर शुभ स्थित हो तो शुभ फ़ल अधिकप्राप्त होते हैं । इस लग्न कुंडली में गुरु डिग्री में ताकतवर न हों तो इनके शुभ फलों में कमी आती है । यहां बताते चलें की कुंडली के 6, 8, 12 भावों में जाने से योगकारक गृह भी अपना शुभत्व लगभग खो देते हैं और अशुभ परिणाम देने के लिए बाध्य हो जाते हैं । केवल विपरीत राज योग ,की स्थिति में ही 6, 8, 12 भावों में स्थित गृह शुभ फल प्रदान करने की स्थिति में आते हैं । इस लग्न कुंडली में गुरु नवमेश, द्वादशेश हैं । ऐसे में गुरु यदि 6, 8, 12 भाव में से किसी एकभाव में स्थित हो जाएँ और लग्नेश मंगल बलवान होने के साथ साथ शुभ स्थित हों तो विपरीत राजयोग बनता है और गुरु शुभ फल प्रदान करते हैं। अन्य ग्रहों कीभांति गुरु के भी नीच राशिस्थ होने पर अधिकतर फल अशुभ ही प्राप्त होते हैं । कोई भी निर्णय लेने से पूर्व गुरु का बलाबल देखना न भूलें ।
मेष राशि में गुरु को दिशा बल मिलता है । यदि लग्न में गुरु हो तो जातक पितृभक्त , आस्थावान , बुद्धिमान होता है । गुरु की महादशा में स्वास्थ्य अच्छा रहता है, पुत्र प्राप्ति का योग बनता है अचानक लाभ मिलते हैं और समाज में मान सम्मान प्राप्त होता है । दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है , साझेदारी के काम में लाभमिलता है , विदेश यात्राएं होती हैं ।
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । मधुर वाणी होती है । अपनी ऊर्जा , प्रभाव , वाणी , निर्णय क्षमता से सभी मुश्किलों को पार करलेता है । प्रतियोगिता विजयी होता है । ऊंचा पद प्राप्त करता है ।
जातक बहुत परश्रमी होता है । जातक का भाग्य उसका साथ देता है ।। छोटे भाई का योग बनता है । पितृभक्त , धार्मिक प्रवृत्ति का होता है । दाम्पत्य जीवन सुखीरहता है , साझेदारी के काम में लाभ मिलता है । बड़े भाई बहनो का सहयोग प्राप्त होता है ।
चतुर्थ भाव में गु उच्च के होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन व् माता का पूर्ण सुख मिलता है । काम काज भी बेहतर स्थिति में होता है । विदेश सेटलमेंट कीसम्भावना बनती है । जातक का माता से लगाव बहुत होता । रुकावटों को दूर करने में सक्षम होता है ।
पुत्र का योग बनता है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । बड़े भाइयों बहनो से संबंध मधुर रहते हैं । जातक / जातिका रोमांटिक होता / होती है । जातक बहुतबुद्धिमान , धार्मिक प्रवृत्ति का होता है ।
यदि मंगल बलवान व् शुभ स्थित हुआ तो विपरीत राजयोग बनता है और गुरु शुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि विपरीत राजयोग नहीं बना तो कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होता है । दुर्घटना का भय बना रहता है । प्रोफेशनल लाइफ खराब होती जाती है । परिवार का साथ नहीं मिलता है ।
पत्नी बुद्धिमान होती है व् साझेदारों से लाभ मिलता है । बड़े भाई बहन से लाभ मिलता है । जातक काफी मेहनती होता है।
यहां गुरु के अष्टम भाव में स्थित होने की वजह से जातक के हर काम में रुकावट आती है । गुरु की महादशा में टेंशन बनी रहती है । बुद्धि साथ नहीं देती है ।पितासे संबंध खराब होते हैं, फिजूल खर्चा होता है , परिवार का साथ नहीं मिलता है । सुख सुविधाओं का अभाव रहता है ।
जातक बुद्धिमान , धार्मिक , पितृ भक्त , उत्तम संतान युक्त होता है । विदेश यात्रा करता है ।
यहां गुरु नीच का होने से जातक को भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । काम काज बंद होने के कागार पर आ जाताहै । परिवार साथ नहीं देता, धन का अभाव बना रहता है । कम्पीटिशन में हार का मुँह देखना पड़ता है । दुर्घटना का भय बना रहता है ।
यहां स्थित होने पर बड़े भाई बहनो का स्नेह बना रहता है । पुत्र प्राप्ति का योग बनता है । गुरु की महादशा में अचानक धन लाभ की संभावना बनती है । पत्नीसाझेदारों से लाभ प्राप्त होता है ।
विपरीत राजयोग की स्थिति में शुभ परिणाम होते हैं अन्यथा पेट में बीमारी लगने की संभावना रहती है । मन परेशान रहता है । कोर्ट केस , हॉस्पिटल में खर्चा होताहै । कम्पटीशन में असफलता हाथ लगती है , भूमि , मकान , वाहन का सुख नहीं मिलता है । माता के सुख में कमी आती है । सभी कार्यों में रूकावट आती है औरटेंशन-डिप्रेशन बना रहता है ।