कुंडली का प्रथम भाव ‘लग्न होता है जो व्यक्ति के व्यवहार को तय करता है । मीन राशि का चिन्ह दो मछलियों का जोड़ा है। स्वामी वृहस्पति ,व् वर्ण ब्राह्मण होता है । ये एक द्विस्वभावी जल तत्व राशि है । मछली की तरह ही इनका स्वभाव होता है यह सदैव स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। धार्मिक गुणों से भरे हुए मीन लग्न के जातक का स्वभाव गुरु के सामान होता है । वाणी में मिठास और बात में गंभीरता होने की वजह से सभी इनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं। पूर्वा भाद्रपद के अंतिम चरण से रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण तक मीन राशि विद्यमान रहती है। मीन राशि का विस्तार 330 अंश से 360 अंश तक फैला हुआ है ।
मीन राशि पर आकर 360 डिग्री का राशि चक्र पूरा होता है । मीन राशि भचक्र की अंतिम राशि है। स्वामी ग्रह बृहस्पति व् वर्ण ब्राह्मण होने से मीन राशि को भचक्र की सबसे शुभ व पवित्र राशि माना गया है । इस राशि का प्रतीक चिन्ह दो मछलियाँ हैं जो परस्पर एक्-दूसरे के विपरीत मुख कर के स्थित है , इंगित करता है मीन राशि के जातकों में आने वाले खतरे को पहले ही भांप लेने की अद्भुत क्षमता होती है । यह जलतत्व , द्विस्भावी राशि है जो दर्शाता है की ये जातक प्रायः शांत ही रहते हैं । इन्हें नदी , समंदर का किनारा पसंद होता है । मीन राशि के जातकों को घूमना , फिरना पसंद होता है । इनके मन में क्या है ये इनके करीबी जनो को भी पता नहीं होता है । ऐसे जातक लड़ाई , झगड़ा , फसाद या किसी भी किस्म का षड्यंत्र पसंद नहीं करते हैं ।
मीन राशि राशि चक्र की बारहवीं राशि है। पूर्वा भाद्रपद के अंतिम चरण से रेवती नक्षत्र के अंतिम चरण तक मीन राशि विद्यमान रहती है। मीन राशि का विस्तार 330 अंश से 360 अंश तक फैला हुआ है ।
लग्न स्वामी : गुरु
लग्न चिन्ह : दो मछलियों का जोड़ा
तत्व: जल
जाति: ब्राह्मण
स्वभाव : द्विस्भावी
अराध्य/इष्ट : महालक्ष्मी
गुरु jupiter
लग्नेश होने गुरु मीन लग्न में एक कारक गृह होता है ।
मंगल Mars
दुसरे व् नवें का मालिक होने से इस लग्न कुंडली में एक कारक गृह बनता है ।
चंद्र moon
पंचमेश होने से इस लग्न कुंडली में एक कारक गृह बनता है ।
बुद्ध Mercury
चौथे, सातवें का मालिक है । इस लग्न कुंडली में एक सम गृह माना जाता है ।
शुक्र venus
तीसरे , आठवें का स्वामी होता है । अतः इस लग्न कुंडली में एक मारक गृह बनता है ।
सूर्य sun
षष्ठेश होने से एक मारक गृह बनता है ।
शनि saturn
ग्यारहवें , बारहवें भाव का स्वामी है । इस लग्न कुंडली में एक मारक ग्रह है ।
गुरु , मंगल , चंद्र कुंडली के कारक ग्रह हैं । अतः इनसे सम्बंधित रत्न पुखराज , मूंगा व् मोती रत्न धारण किये जा सकते हैं । यहां बुद्ध एक सम गृह है , इसलिए पन्ना भी धारण किया जा सकता है । रत्न गृह विशेष की महादशा में धारण करना अधिक लाभदायक रहता है । ध्यान देने योग्य है की किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को धारण किया जा सकता है , लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे , छठे , आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है , फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है । उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है ।
विचारणीय है की मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में रेकमेंड नहीं किया जाता है , चाहे वो विपरीत राजयोग की स्थिति में ही क्यों न हो ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो ।