ॐ श्री गणेशाये नमः । जातक का स्वभाव जानने के लिए जातक का राशि चिन्ह, तत्व, राशि स्वामी, वर्ण, लग्न में स्थित ग्रह ( कारक , मारक ) व् लग्न पर दृष्टि आदि तथ्यों को ध्यान में रखना अति आवश्यक हो जाता है । इन तथ्यों के आधार पर आप आसानी से व्यक्ति विशेष के स्वाभाव की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं! शुरुआत में थोड़ी परेशानी होती है, फिर निरंतर अभ्यास से बहुत सी जानकारी प्राप्त की जा सकती है । अभी हम मिथुन लग्न पर चर्चा करेंगे जिससे आपको भी तथ्यों को जोड़कर जानकारी प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होगी |
मिथुन भचक्र की तीसरे स्थान पर आने वाली राशि है। भचक्र पर इसका विस्तार 60 अंश से 90 अंश तक होता है । तीन नंबर राशि होने से जातक मेहनती होता है । राशि स्वामी बुद्ध देवता हैं अतः जातक का बुद्धिमान होना स्वाभाविक ही है । वायु तत्व होने से ऐसा जातक बातों का धनि होता है । योजनाओं के क्रियान्वन में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । ऐसे जातक बड़ी आसानी से झूठ बोल सकते हैं और कुछ तो झूठ बोलने को योग्यता भी मानते हैं। अपना काम निकलते ही किसी को भी टाटा बाई बाई कह सकते हैं । द्विस्वभावी राशि होने से इनके व्यवहार में ये बदलाव आसानी से देखने को मिल जाता है । इन जातकों को हंसी मजाक करना अच्छा लगता है । वाद – विवाद व तर्क्-वितर्क में अति कुशल व हाजिरजवाब होते हैं ।
मिथुन राशि मृगशीर्ष – तृतीय एवं चतुर्थ चरण, आद्रा के चार चरण तथा पुनर्वसु – प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण से बनती है । मिथुन राशि का विस्तार राशि चक्र के 60 अंश से 90 अंश के बीच पाया जाता है ।
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक ग्रह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं । आपको ये भी बताते चलें की अशुभ या मारक ग्रह भी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव के मालिक हों और छह, आठ या बारह भाव में या इनमे से किसी एक में भी स्थित हो जाएँ तो वे विपरीत राजयोग का निर्माण करते हैं । ऐसी स्थिति में ये ग्रह अच्छे फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यहां ध्यान देने योग्य है की विपरीत राजयोग केवल तभी बनेगा यदि लग्नेश बलि हो । यदि लग्नेश तीसरे छठे, आठवें या बारहवें भाव में अथवा नीच राशि में स्थित हो तो विपरीत राजयोग नहीं बनेगा ।
बुद्ध ग्रह : Budh grah
लग्न व् चतुर्थ का स्वामी है, शुभ ग्रह है ।
शुक्र ग्रह :
पंचमेश व् द्वादशेश होने से कारक / शुभ है ।
शनि ग्रह : अष्टमेश ,नवमेश है । अतः शुभ ग्रह है ।
गुरु ग्रह: सप्तमेश व् दशमेश होने से सम ग्रह है ।
मंगल ग्रह:
षष्ठेश , एकादशेश है । अतः मारक है ।
सूर्य ग्रह:
तृतीयेश होने से मारक है ।
चंद्र ग्रह : Chander grah
दुसरे भाव का स्वामी है, अशुभ ग्रह है ।
किसी भी निर्णय पर आने से पहले कुंडली का उचित निरीक्षण अवश्य करवाएं । आप सभी का जीवन सुखी व् मंगलमय हो!